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धर्म की दुकान में मनोरंजन का तड़का || आचार्य प्रशांत, कबीर साहब पर (2024)

2024-06-06 0 Dailymotion

‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br />⚡ आचार्य प्रशांत से जुड़ी नियमित जानकारी चाहते हैं?<br />व्हाट्सएप चैनल से जुड़े: https://whatsapp.com/channel/0029Va6Z...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br /> आचार्य प्रशांत के काम को गति देना चाहते हैं?<br />योगदान करें, कर्तव्य निभाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/contri...<br /><br /> आचार्य प्रशांत के साथ काम करना चाहते हैं?<br />संस्था में नियुक्ति के लिए आवेदन भेजें: https://acharyaprashant.org/hi/hiring...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: 09.03.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ सच्चाई से बचने के लिए हमारे पास क्या तरीके होते हैं?<br />~ धर्म की दुकान में मनोरंजन का तड़का क्यों लगता है?<br />~ अहंकार से सामने कौन से दो रास्ते होते हैं?<br />~ हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है?<br />~ वस्तु का वास्तविक अर्थ क्या है?<br /><br />राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे !<br /><br />अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार,<br />अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे ॥1।।<br /><br />अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद, <br />अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे ॥2॥<br /><br />अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव, <br />अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे ॥3॥<br /><br />अंजन कहों कहां लग केता? दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा ! <br />कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ! ॥4॥<br />~ संत कबीर<br /><br />यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं।<br />शीश उतारे भुई धरे, तब बैठे घर माहिं ।।<br />~ संत कबीर<br /><br />अंजन कहों कहां लग केता, दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा । <br />कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ।। <br />~ संत कबीर<br /><br />कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।<br />इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥<br /><br />जो अज्ञानी व्यक्ति मन से तो शब्दस्पर्शादि इन्द्रियों के विषय का<br />चिंतन करता है, पर हाथ-पैर आदि कर्मेन्द्रियों को ऊपर से<br />संयत करके रहता है वो मिथ्याचारी कहलाता है।<br />~ भगवद गीता - 3.6<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~

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